Tuesday, July 6, 2010

राज खोसला--रहस्य और रोमांच का चितेरा














लोकप्रिय फिल्मों के लोकप्रिय फिल्मकार
अगर आप फिल्मों के संदर्भ में राज खोसला का नाम लेते हैं तो आपके जेहन में मेरा गांव मेरा देश, सी.आई.डी., मैं तुलसी तेरे आंगन की, दो बदन, दो रास्ते, वो कौंन थी, मेरा साया, काला पानी, कच्चे धागे और दोस्ताना जैसी अनगिनत सुपर हिट फिल्मों का नाम सामने आ जाता है. इतनी सारी लोकप्रिय फिल्मों को बनाने वाला फिल्मकार विलक्षण प्रतिभा का धनी राज खोसला ही था. इनकी फिल्में आज भी वहीं क्रेज, सस्पेंस, थ्रिलर, मनोरंजन की गारंटी रखती है, साथ ही संगीत की सुर लहरियों में आपको ऐसे फांसती है कि सारा समय आप इन्हीं फिल्मों के गीतों को गुनगुनाने का सम्मोहन ब-मुश्किल छोड़ पाते हैं. राज खोसला का फिल्मों की लोकप्रियता का रसायन उनकी फिल्मों का साफ सुथरापन रहा. रहस्य रोमांच के बीच मधुर गीत संगीत का तड़का यही उनकी फिल्मों की असली पूंजी थीं. लोक प्रिय सिनेमा के निर्माता निर्देशक राज खोसला ऐसे फिल्मकार थे, जिन्होंने फिल्मों में जिदंगी के विविध रंगों को मनोरंजक ढंग से अभिव्यक्ति प्रदान की.
राज खोसला का जन्म 31 मई 1925 को पंजाब के गुरदासपुर जिले के हरगोविंदपुर में हुआ था. पिता के साथ छोटी उम्र में ही राज खोसला मुंबई आ गए थे. उनके चाचा देवानंद के पिता किशोरी आनंद के गहरे दोस्त थे. राज खोसला की प्रारंभिक शिक्षा अंजुमन इस्लामिक स्कूल में हुई. उन्होंने एलिफोस्टन कॉलेज में अंग्रेजी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. फिल्म के वातावरण में उनका प्रवेश चेतन आनंद के मुंबई आने के बाद हुआ. 1948 के लगभग चेतन आनंद, देवानंद और विजय आनंद पाली हिल में एक साथ रहने लगे थे. जल्द ही राज खोसला भी इसी परिवार के साथ रहने लगे. उनका चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद से बेहद स्नेह था. वे उन्हें भाभी और आनंद बंधुओं को भाई मानते थे.
अपनी पहली फिल्म मिलाप (1955) से लेकर नकाब (1989) तक के सफर में राज खोसला ने मंनोरंजन के हर पहलू को उजागार किया. सामाजिक परिवेश से जुड़े विषय राज खोसला की फिल्मों में आई हिंसा और अश्लीलता से बेहद नाराज थे. उनका मानना था कि फिल्म पारिवारिक मंनोरंजन है. उनका आज के फिल्मकारों से सवाल था कि क्या उनकी फिल्में परिवार के सात बैठकर देखी जा सकती है. राज खोसला ने तो डकैत समस्या पर भी मेरा गांव मेरा देश जैसी साफ सुथरी फिल्म बनाई थीं. चेतन आनंद ने स्वतंत्र निर्देशन के क्षेत्र में तो बहुत पहले प्रवेश कर लिया था लेकिन निर्माण निर्देशन में के क्षेत्र में उनका प्रवेश अकबर फिल्म से हुआ. नवकेतन के बैनर तले बनी इस फिल्म के सहायक निर्देशक राज खोसला थे. नवकेतन की दूसरी फिल्म बाजी जिसके निर्माता देवानंद थे, का निर्देशन गुरुदत्त ने किया और सहायक निर्देशक की जिम्मेदारी फिर राज खोसला ने इसी फिल्म से पर्दापण किया लेकिन अभिनय का क्षेत्र राज खोसला को रास नहीं आया और वे पूरी तरह निर्देशन के क्षेत्र में ही सक्रिय हो गए. सहायक निर्देशक के रुप में राज खोसला ने जाल, बाज, आर पार जैसी लोकप्रिय फिल्मों में गुरुदत्त के साथ काम किया. राज खोसला ने स्वतंत्र फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में प्रवेश फिल्म मिलाप से किया. इस फिल्म में देवानंद ने पहली बार ग्रामीण युवक की भूमिका की थीं और वे धोती कुर्ते में नजर आए. इसी फिल्म से संगीतकार एन. दत्ता को पहली बार संगीतकार के रुप में मौका मिला था. यह फिल्म हॉलीवुड की सफल फिल्म मिस्टर डी.गोज टू टाऊन से प्रेरित थीं और टिकिट खिड़की पर बेहद सफल रहीं थीं.
सी.आई.डी. ने राज खोसला को सफल फिल्म निर्देशक के रुप में स्थापित कर दिया. रहस्य रोमांच से भरी इस फिल्म ने वहीदा रहमान और महमूद जैसे कलाकार फिल्मों को दिए. संगीतकार ओ.पी.नैय्यर को स्थापित कर दिया. इस फिल्म में देवानंद, शकीला और वहीदा रहमान थे. फिल्म का संगीत खूब हिट हुआ था. 1958 में बंगाल के ख्याति प्राप्त लेखक आनंदोपाल की कहानी खाली बोतल पर फिल्म काला पानी का निर्देशन किया. देवानंद, मधुबाला और नलिनी जयवंत द्वारा अभिनीत यह फिल्म सफल रहीं थीं. एस.डी. बर्मन ने इस फिल्म में संगीत दिया था. फिल्म के लिए देवानंद को सर्वोत्तम अभिनेता का फिल्म फेयर और सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवार्ड नलिनी जयवंत को दिया गया जबकि मुकाबले में राज कपूर अभिनीत फिर सुबह होगी और दिलीप कुमार की मधुमति थीं. काला पानी में नृत्य निर्देशन लच्छू महाराज ने किया था.
बंगाल की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री सुचित्रा सेन को हिन्दी पर्दे पर देवानंद के साथ राज खोसला ने कैमरामैन जाल मिस्त्री की फिल्म बंबई का बाबू में प्रस्तुत किया. लेकिन नायक-नायिका के भाई-बहन दिखाए जाने को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया और फिल्म चली नहीं. निर्माता शशिधर मुखर्जी के लिए राज खोसला ने फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना निर्देशन कर उनके पुत्र जॉय मुखर्जी को पहली फिल्म में ही लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया. मनोज कुमार और साधना को लेकर राज खोसला ने वह कौंन थी का निर्देशन किया. इस फिल्म के प्रीमियर पर ख्याति प्राप्त निर्माता महबूब ने बधाई देते हुए कहा कि तू तो हिचकॉक का भी बाप निकला. रहस्य भरी फिल्मों में राज खोसला की खास दिलचस्पी थीं. उन्होंने मेरा साया तथा अनिता का निर्देशन किया लेकिन यह फिल्में खास नहीं चलीं. मनोज कुमार और आशा पारिख अभिनीत फिल्म दो बदन, राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत दो रास्ते खोसला की सफलतम संगीतमय प्रस्तुतियां थीं.
मेरा गांव मेरा देश में राज खोसला ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को डकैतों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने को प्रेरणा दी. इस फिल्म से संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल पहली बार राज खोसला से जुड़े. हॉलीवुड की फिल्म से प्रेरित होने के बावजूद फिल्म का सम्पूणर््ा परिवेश भारतीय था. शहरी बदमाशों के माध्यम से डाकुओं का प्रतिरोध कच्चे धागे में उभरकर सामने आया. राज खोसला के जीवन में देवानंद और गुरुदत्त की तरह ही दिल्ली की एक युवती आई. जिससे विवाह करने के बाद उनके जीवन में भूचाल आ गया. अपने जीवन के इस अनुभव को राज खोसला ने फिल्म मैं तुलसी तेरे आंगन की में अभिव्यक्त किया था.नूतन और आशा पारेख के साथ विजय आनंद ने इस फिल्म में यादगार अभिनय किया था. अमिताभ बच्चन को लेकर राज खोसला ने सिर्फ एक फिल्म दोस्ताना का निर्माण किया था. राज खोसला की फिल्मों पर अगर आप नजर दौड़ाए तो पाएंगे कि उनकी फिल्मों का संगीत बेहद कर्णप्रिय था. इसकी चर्चा फिर कभी करेंगे. राज ख्रोसला 9 जून 1991 को चल बसे.
--------------------------------------------------रवि के. गुरुबक्षाणी

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